ख़ुश्क हो जाए न झरने वाला
अब के तालाब है भरने वाला
जिस्म पर नाम न लिखना अपना
ये है मिट्टी में उतरने वाला
मार कर देख लिया है उस को
हम से मरता नहीं मरने वाला
अब तो आहट भी नहीं आती है
यूँ गुज़रता है गुज़रने वाला
इस लिए झील में हलचल है बहुत
इक जज़ीरा है उभरने वाला
हो रहा है पस-ए-दीवार भी कुछ
जाने क्या करता है करने वाला
आप ही आप चलाता है हवा
आप ही आप बिखरने वाला
कश्तियाँ पार लगें या न लगें
अब ये दरिया है उतरने वाला
कौन जाएगा सर-ए-कोह-ए-निदा
शहर का शहर है डरने वाला
ग़ज़ल
ख़ुश्क हो जाए न झरने वाला
प्रेम कुमार नज़र