आँख झुक जाती है जब बंद-ए-क़बा खुलते हैं
तुझ में उठते हुए ख़ुर्शीद की उर्यानी है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
दिल के रिश्ते अजीब रिश्ते हैं
साँस लेने से टूट जाते हैं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़म-ए-दौराँ ने भी सीखे ग़म-ए-जानाँ के चलन
वही सोची हुई चालें वही बे-साख़्ता-पन
मुस्तफ़ा ज़ैदी
इक मौज-ए-ख़ून-ए-ख़ल्क़ थी किस की जबीं पे थी
इक तौक़-ए-फ़र्द-ए-जुर्म था किस के गले में था
मुस्तफ़ा ज़ैदी
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
इस तरह होश गँवाना भी कोई बात नहीं
और यूँ होश से रहने में भी नादानी है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल
मुस्तफ़ा ज़ैदी
जिस दिन से अपना तर्ज़-ए-फ़क़ीराना छुट गया
शाही तो मिल गई दिल-ए-शाहाना छुट गया
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ख़ुद अपने शब-ओ-रोज़ गुज़र जाएँगे लेकिन
शामिल है मिरे ग़म में तिरी दर-बदरी भी
मुस्तफ़ा ज़ैदी