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हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल | शाही शायरी
har taraf imbisat hai ai dil

ग़ज़ल

हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल

मुस्तफ़ा ज़ैदी

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हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल
और तिरे घर में रात है ऐ दिल

इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल

मेरी हालत का पूछना ही क्या
सब तिरा इल्तिफ़ात है ऐ दिल

और बेदार चल कि ये दुनिया
शातिरों की बिसात है ऐ दिल

सिर्फ़ उस ने नहीं दिया मुझे सोज़
इस में तेरा भी हात है ऐ दिल

मुंदमिल हो न जाए ज़ख़्म-ए-दरूँ
ये मिरी काएनात है ऐ दिल

हुस्न का एक वार सह न सका
डूब मरने की बात है ऐ दिल