हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल
और तिरे घर में रात है ऐ दिल
इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल
मेरी हालत का पूछना ही क्या
सब तिरा इल्तिफ़ात है ऐ दिल
और बेदार चल कि ये दुनिया
शातिरों की बिसात है ऐ दिल
सिर्फ़ उस ने नहीं दिया मुझे सोज़
इस में तेरा भी हात है ऐ दिल
मुंदमिल हो न जाए ज़ख़्म-ए-दरूँ
ये मिरी काएनात है ऐ दिल
हुस्न का एक वार सह न सका
डूब मरने की बात है ऐ दिल
ग़ज़ल
हर तरफ़ इम्बिसात है ऐ दिल
मुस्तफ़ा ज़ैदी