ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ से बे-नियाज़ाना निकलता है
बड़ी फ़र्ज़ानगी से तेरा दीवाना निकलता है
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
हर लम्हा माँगते हैं दुआ दीद-ए-यार की
याद-ए-बुताँ भी दिल में है याद-ए-ख़ुदा के साथ
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
इन शोख़ हसीनों की निराली है अदा भी
बुत हो के समझते हैं कि जैसे हैं ख़ुदा भी
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
किसी इक-आध मय-कश से ख़ता कुछ हो गई होगी
मगर क्यूँ मय-कदे का मय-कदा बद-नाम है साक़ी
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
मरना तो लाज़िम है इक दिन जी भर के अब जी तो लूँ
मरने से पहले मर जाना मेरे बस की बात नहीं
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
मिरे सवाल-ए-विसाल पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो
तुम्हीं बताओ ये बात क्या है सवाल पूरा जवाब आधा
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
मुस्कुराना कभी न रास आया
हर हँसी एक वारदात बनी
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
फिर इस के बाद हमें तिश्नगी रहे न रहे
कुछ और देर मुरव्वत से काम ले साक़ी
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
साक़ी मय साग़र पैमाना मेरे बस की बात नहीं
सिर्फ़ इन्ही से दिल बहलाना मेरे बस की बात नहीं
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर