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नित नित का ये आना जाना मेरे बस की बात नहीं | शाही शायरी
nit nit ka ye aana jaana mere bas ki baat nahin

ग़ज़ल

नित नित का ये आना जाना मेरे बस की बात नहीं

कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर

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नित नित का ये आना जाना मेरे बस की बात नहीं
दरबानों के नाज़ उठाना मेरे बस की बात नहीं

साक़ी मय साग़र पैमाना मेरे बस की बात नहीं
सिर्फ़ इन्ही से दिल बहलाना मेरे बस की बात नहीं

इश्क़ ओ मोहब्बत क्या होते हैं क्या समझाऊँ वाइज़ को
भैंस के आगे बीन बजाना मेरे बस की बात नहीं

मरना तो लाज़िम है इक दिन जी भर के अब जी तो लूँ
मरने से पहले मर जाना मेरे बस की बात नहीं

दोनों में है नूर उसी का दोनों उस के मस्कन हैं
इक काबा है इक बुत-ख़ाना मेरे बस की बात नहीं