शोख़ी शबाब हुस्न तबस्सुम हया के साथ
दिल ले लिया है आप ने किस किस अदा के साथ
हर लम्हा माँगते हैं दुआ दीद-ए-यार की
याद-ए-बुताँ भी दिल में है याद-ए-ख़ुदा के साथ
तीर-ए-निगाह लुत्फ़-ओ-करम से न बच सका
जो मर सका न ख़ंजर-ए-जौर-ओ-जफ़ा के साथ
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ का मुझ से हो क्या गिला
क्या तुम छुपा सके हो उसे इस हया के साथ
दिल कामयाब है न नज़र बारयाब है
पाला पड़ा है इश्क़ में किस बेवफ़ा के साथ
ऐ मोहतसिब हमारे गुनह हैं बजा मगर
रहमत का बाब खुलता है हर इक ख़ता के साथ
ग़ज़ल
शोख़ी शबाब हुस्न तबस्सुम हया के साथ
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर