अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं
जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए
खलील तनवीर
अजीब शख़्स था उस को समझना मुश्किल है
किनार-ए-आब खड़ा था मगर वो प्यासा था
खलील तनवीर
अपना लहू यतीम था कोई न रंग ला सका
मुंसिफ़ सभी ख़मोश थे उज़्र-ए-जफ़ा के सामने
खलील तनवीर
औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
खलील तनवीर
बहुत अज़ीज़ थे उस को सफ़र के हंगामे
वो सब के साथ चला था मगर अकेला था
खलील तनवीर
दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा
ख़ुद में उतरोगे तो ऐसा भी सफ़र आएगा
खलील तनवीर
घर में क्या ग़म के सिवा था जो बहा ले जाता
मेरी वीरानी पे हँसता रहा दरिया उस का
खलील तनवीर
हादसों की मार से टूटे मगर ज़िंदा रहे
ज़िंदगी जो ज़ख़्म भी तू ने दिया गहरा न था
खलील तनवीर
हर्फ़ को बर्ग-ए-नवा देता हूँ
यूँ मिरे पास हुनर कुछ भी नहीं
खलील तनवीर