बहुत अज़ीज़ थे उस को सफ़र के हंगामे
वो सब के साथ चला था मगर अकेला था
खलील तनवीर
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औरों की बुराई को न देखूँ वो नज़र दे
हाँ अपनी बुराई को परखने का हुनर दे
खलील तनवीर
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अपना लहू यतीम था कोई न रंग ला सका
मुंसिफ़ सभी ख़मोश थे उज़्र-ए-जफ़ा के सामने
खलील तनवीर
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अजीब शख़्स था उस को समझना मुश्किल है
किनार-ए-आब खड़ा था मगर वो प्यासा था
खलील तनवीर
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