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अक्स थे आवाज़ थी लेकिन कोई चेहरा न था | शाही शायरी
aks the aawaz thi lekin koi chehra na tha

ग़ज़ल

अक्स थे आवाज़ थी लेकिन कोई चेहरा न था

खलील तनवीर

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अक्स थे आवाज़ थी लेकिन कोई चेहरा न था
नाचते गाते क़दम थे और कोई पहरा न था

हादसों की मार से टूटे मगर ज़िंदा रहे
ज़िंदगी जो ज़ख़्म भी तू ने दिया गहरा न था

ख़्वाब की मानिंद गुज़रीं कैसी कैसी सूरतें
दिल के वीराने में कोई अक्स भी ठहरा न था

आग की बारिश हुई मंज़र झुलस कर रह गए
शाम के साए में कोई गूँजता लहरा न था