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दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा | शाही शायरी
dur tak ek syahi ka bhanwar aaega

ग़ज़ल

दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा

खलील तनवीर

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दूर तक एक स्याही का भँवर आएगा
ख़ुद में उतरोगे तो ऐसा भी सफ़र आएगा

आँख जो देखेगी दिल उस को नहीं मानेगा
दिल जो देखेगा वो आँखों में उभर आएगा

अपने एहसास का मंज़र ही बदल जाएगा
आँख झपकेगी तो कुछ और नज़र आएगा

और चलना है तो बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर निकलो भी
न किसी अब्र का साया न शजर आएगा

ख़त्म हो जाएगी जब जश्न-ए-मुलाक़ात की रात
याद बुझते हुए ख़्वाबों का नगर आएगा