अजीब आग लगा कर कोई रवाना हुआ
मिरे मकान को जलते हुए ज़माना हुआ
जमुना प्रसाद राही
अमाँ किसे थी मिरे साए में जो रुकता कोई
ख़ुद अपनी आग में जलता हुआ शजर था मैं
जमुना प्रसाद राही
गाँव से गुज़रेगा और मिट्टी के घर ले जाएगा
एक दिन दरिया सभी दीवार ओ दर ले जाएगा
जमुना प्रसाद राही
हर रूह पस-ए-पर्दा-ए-तरतीब-ए-अनासिर
ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा काट रही है
जमुना प्रसाद राही
हवा की गोद में मौज-ए-सराब भी होगी
गिरेंगे फूल तो ठहरेगी गर्द शाख़ों पर
जमुना प्रसाद राही
इक रात है फैली हुई सदियों पर
हर लम्हा अंधेरों के असर में है
जमुना प्रसाद राही
जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
जमुना प्रसाद राही
कच्ची दीवारें सदा-नोशी में कितनी ताक़ थीं
पत्थरों में चीख़ कर देखा तो अंदाज़ा हुआ
जमुना प्रसाद राही
कश्तियाँ डूब रही हैं कोई साहिल लाओ
अपनी आँखें मिरी आँखों के मुक़ाबिल लाओ
जमुना प्रसाद राही