तस्वीर का हर रंग नज़र में है
क्या बात तिरे दस्त-ए-हुनर में है
सोना सा पिघलता है रग ओ पय में
ख़ुर्शीद-ए-हवस कासा-ए-सर में है
निकला हूँ तो क्या रख़्त-ए-सफ़र बाँधूँ
जो कुछ है वो सब राहगुज़र में है
इक रात है फैली हुई सदियों पर
हर लम्हा अंधेरों के असर में है
पानी है सराबों से विरासत में
वो ख़ाक जो दामान-ए-नज़र में है
पेशानी-ए-आईना पे हो ज़ाहिर
जो ज़ख़्म दिल-ए-आईना-गर में है
क्या महकें तमन्नाओं के गुल बूटे
वीरानी-ए-सहरा मिरे घर में है
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ग़ज़ल
तस्वीर का हर रंग नज़र में है
जमुना प्रसाद राही