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जाफ़र ताहिर शायरी | शाही शायरी

जाफ़र ताहिर शेर

9 शेर

आपस की गुफ़्तुगू में भी कटने लगी ज़बाँ
अब दोस्तों से तर्क-ए-मुलाक़ात चाहिए

जाफ़र ताहिर




ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला
देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया

जाफ़र ताहिर




अर्सा-ए-ज़ुल्मत-ए-हयात कटे
हम-नफ़स मुस्कुरा कि रात कटे

जाफ़र ताहिर




इक उम्र भटकते हुए गुज़री है जुनूँ में
अब कौन फ़रेब-ए-निगह-ए-यार में आए

जाफ़र ताहिर




जब भी देखी है किसी चेहरे पे इक ताज़ा बहार
देख कर मैं तिरी तस्वीर पुरानी रोया

जाफ़र ताहिर




नाज़ हर बुत के उठा पाए न 'जाफ़र-ताहिर'
चूम कर छोड़ दिए हम ने ये भारी पत्थर

जाफ़र ताहिर




'ताहिर' ख़ुदा की राह में दुश्वारियाँ सही
इश्क़-ए-बुताँ में कौन सी आसानियाँ रहीं

जाफ़र ताहिर




तुझे भी देख लिया हम ने ओ ख़ुदा-ए-अजल
कि तेरा ज़ोर चला भी तो अहल-ए-ग़म पे चला

जाफ़र ताहिर




उट्ठी थी पहली बार जिधर चश्म-ए-आरज़ू
वो लोग फिर मिले न वो बस्ती नज़र पड़ी

जाफ़र ताहिर