ये और बात कि ये सेहर बेश-ओ-कम पे चला
सियाह-रात का जादू मगर न हम पे चला
उधर से पहले भी कुछ सरफ़रोश गुज़ारे थे
रह-ए-तलब में निशान-ए-क़दम क़दम पे चला
ये ताइरान-ए-चमन का नसीब क्या कहिए
वो तीर उन के लिए वक़्फ़ है जो कम पे चला
ख़ुदा ख़ुदा के इशारे पे लौट लौट गया
तड़प तड़प के तरीक़-ए-सनम सनम पे चला
कभी ख़ुदा की परस्तिश कभी सना-ए-बुताँ
रह-ए-अरब पे कभी जादा-ए-अजम पे चला
असीर-ए-दाम न होगा मिरा दिल-ए-आज़ाद
किसी का हुक्म कभी मौज-ए-यम-ब-यम पे चला
तुझे भी देख लिया हम ने ओ ख़ुदा-ए-अजल
कि तेरा ज़ोर चला भी तो अहल-ए-ग़म पे चला
ये नक़्श-ए-पा हैं कि ज़ंजीर-ए-मौज-ए-ख़ूँ यारो
ये कौन तुरफ़ा-जवाँ जादा-ए-सितम पे चला
लब-ओ-निगाह पे मोहरें लगी रहीं 'ताहिर'
किसी का ज़ोर न लेकिन मिरे क़लम पे चला

ग़ज़ल
ये और बात कि ये सेहर बेश-ओ-कम पे चला
जाफ़र ताहिर