आज तेरी याद से टकरा के टुकड़े हो गया
वो जो सदियों से लुढ़कता एक पत्थर मुझ में था
हसन अब्बासी
हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर
मैं अपने घर के अँधेरे कमरों में लौट आया
हसन अब्बासी
इक परिंदे की तरह उड़ गया कुछ देर हुई
अक्स उस शख़्स का तालाब में आया हुआ था
हसन अब्बासी
कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे
तिरे तसव्वुर में हम ने कर ली किताब आगे
हसन अब्बासी
ख़फ़ा हो मुझ से तो अपने अंदर
वो बारिशों को उतारती है
हसन अब्बासी
मोहब्बत में कठिन रस्ते बहुत आसान लगते थे
पहाड़ों पर सुहुलत से चढ़ा करते थे हम दोनों
हसन अब्बासी
मुझ को मालूम था इक रोज़ चला जाएगा!
वो मिरी उम्र को यादों के हवाले कर के
हसन अब्बासी
निस्बतें थीं रेत से कुछ इस क़दर
बादलों के शहर में प्यासा रहा
हसन अब्बासी
उस अजनबी से हाथ मिलाने के वास्ते
महफ़िल में सब से हाथ मिलाना पड़ा मुझे
हसन अब्बासी