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कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे | शाही शायरी
kabhi jo aankhon ke aa gaya aaftab aage

ग़ज़ल

कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे

हसन अब्बासी

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कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे
तिरे तसव्वुर में हम ने कर ली किताब आगे

वो ब'अद-ए-मुद्दत मिला तो रोने की आरज़ू में
निकल के आँखों से गिर पड़े चंद ख़्वाब आगे

दिल-ओ-नज़र में ही अपने ख़ेमे लगा लिए हैं
हमें ख़बर है कि रास्ता है ख़राब आगे

नज़र के हैरत-कदे में कब का खड़ा हुआ हूँ
इक आइने में खिला हुआ है गुलाब आगे

गुज़रने वाला था रह-गुज़ार-ए-हयात से मैं
वो एक लम्हा कि आ गए फिर जनाब आगे

'हसन' जो माज़ी का सफ़हा उल्टा तो आ गए हैं
खजूर के पेड़ टीले और माहताब आगे