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उदास शामों बुझे दरीचों में लौट आया | शाही शायरी
udas shamon bujhe darichon mein lauT aaya

ग़ज़ल

उदास शामों बुझे दरीचों में लौट आया

हसन अब्बासी

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उदास शामों बुझे दरीचों में लौट आया
बिछड़ के उस से मैं अपनी गलियों में लौट आया

चमकती सड़कों पे कोई मेरा नहीं था सो मैं
मलूल पेड़ों उजाड़ रस्तों में लौट आया

ख़िज़ाँ के आग़ाज़ में ये अच्छा हुआ कि मैं भी
ख़ुद अपने जैसे फ़सुर्दा लोगों में लौट आया

हसीन यादों के चाँद को अलविदा'अ कह कर
मैं अपने घर के अँधेरे कमरों में लौट आया

मैं खुल के रोया नहीं था पिछले कई बरस से
'हसन' वो सैलाब फिर से आँखों में लौट आया