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सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों | शाही शायरी
sunahre KHwab aankhon mein buna karte the hum donon

ग़ज़ल

सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों

हसन अब्बासी

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सुनहरे ख़्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों
परिंदों की तरह दिन भर उड़ा करते थे हम दोनों

इलाही ज़िंदगी यूँही मोहब्बत में गुज़र जाए
नमाज़-ए-फ़ज़्र पढ़ कर ये दुआ करते थे हम दोनों

हमेशा ठंडी हो जाती थी चाय बातों बातों में
वो बातें जो इन आँखों से किया करते थे हम दोनों

गुज़र जाता था सारा दिन इकट्ठे सीपियाँ चुनते
समुंदर के किनारे पर रहा करते थे हम दोनों

हवा के एक झोंके से लरज़ जाते दरीचों में
चराग़ों की तरह शब भर जला करते थे हम दोनों

मोहब्बत में कठिन रस्ते बहुत आसान लगते थे
पहाड़ों पर सुहुलत से चढ़ा करते थे हम दोनों

'हसन' रुस्वाई का ख़दशा कभी दिल में नहीं आया
ख़यालों और ख़्वाबों में मिला करते थे हम दोनों