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बशीरुद्दीन अहमद देहलवी शायरी | शाही शायरी

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी शेर

12 शेर

अहद के साथ ये भी हो इरशाद
किस तरह और कब मिलेंगे आप

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के ब'अद हाथ से मोती बिखर गए

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
ये मेरी क़ब्र पे मंज़र नया दिखा भी दिया

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




कभी दर पर कभी है रस्ते में
नहीं थकती है इंतिज़ार से आँख

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




कहते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पर वो कहो
दूसरी बात दूसरा मतलब

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




मिरा दिल भी तिलिस्मी है ख़ज़ाना
कि इस में ख़ैर भी है और शर बंद

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




रिहाई जीते जी मुमकिन नहीं है
क़फ़स है आहनी दर-बंद पर बंद

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




शाम भी है सुब्ह भी है और दिन भी रात भी
माह-ए-ताबाँ अब भी है महर-ए-दरख़्शाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी




वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
है चित भी उन की है पट भी उन की है जीत उन की है मात मेरी

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी