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वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी | शाही शायरी
wo apne matlab ki kah rahe hain zaban par go hai baat meri

ग़ज़ल

वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

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वो अपने मतलब की कह रहे हैं ज़बान पर गो है बात मेरी
है चित भी उन की है पट भी उन की है जीत उन की है मात मेरी

कभी वो मिलता है दुश्मनों से कभी वो मिलता है मुझ से आ कर
जो दिन है मेरा तो रात उन की जो दिन है उन का तो रात मेरी

कभी है तोला कभी है माशा कभी हैं ना-ख़ुश कभी हैं वो ख़ुश
क़रार उन को नहीं है दम-भर है ताक उन की तो घात मेरी

ये बात क्या है ये माजरा क्या ये राज़ क्या है ये वाक़िआ क्या
कि हाँ में हाँ सब मिला रहे हैं वो कर रहे हैं सिफ़ात मेरी

इरादा है मैं लिखूँ फ़साना किसी की कुछ दिल-शिकस्तगी का
क़लम शिकस्ता पड़ा किधर है कहाँ है कोई दवात मेरी

इधर बनी है दिल-ए-हज़ीं पर उधर तो सरगर्म-ए-नाज़ हैं वो
कोई ये आ कर तमाशा देखे अदा है उन की ममात मेरी

ये हो रहा है तमाशा कैसा इधर तो ग़म है उधर है शादी
कभी उठेगा जनाज़ा मेरा कभी सजी थी बरात मेरी