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अज़हर नक़वी शायरी | शाही शायरी

अज़हर नक़वी शेर

18 शेर

अब तो मुझ को भी नहीं मिलती मिरी कोई ख़बर
कितना गुमनाम हुआ हूँ मैं नुमायाँ हो कर

अज़हर नक़वी




अजब हैरत है अक्सर देखता है मेरे चेहरे को
ये किस ना-आश्ना का आइने में अक्स रहता है

अज़हर नक़वी




अजब नहीं कि बिछड़ने का फ़ैसला कर ले
अगर ये दिल है तो नादान हो भी सकता है

अज़हर नक़वी




दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है
जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा रोते रोते सो जाता है

अज़हर नक़वी




दुख सफ़र का है कि अपनों से बिछड़ जाने का ग़म
क्या सबब है वक़्त-ए-रुख़्सत हम-सफ़र ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी




एक हंगामा सा यादों का है दिल में 'अज़हर'
कितना आबाद हुआ शहर ये वीराँ हो कर

अज़हर नक़वी




एक इक साँस में सदियों का सफ़र काटते हैं
ख़ौफ़ के शहर में रहते हैं सो डर काटते हैं

अज़हर नक़वी




इक मैं कि एक ग़म का तक़ाज़ा न कर सका
इक वो कि उस ने माँग लिए अपने ख़्वाब तक

अज़हर नक़वी




जमी है गर्द आँखों में कई गुमनाम बरसों की
मिरे अंदर न जाने कौन बूढ़ा शख़्स रहता है

अज़हर नक़वी