EN اردو
नहीं है पर कोई इम्कान हो भी सकता है | शाही शायरी
nahin hai par koi imkan ho bhi sakta hai

ग़ज़ल

नहीं है पर कोई इम्कान हो भी सकता है

अज़हर नक़वी

;

नहीं है पर कोई इम्कान हो भी सकता है
वो एक शब मिरा मेहमान हो भी सकता है

अजब नहीं कि बिछड़ने का फ़ैसला कर ले
अगर ये दिल है तो नादान हो भी सकता है

मोहब्बतों में तो सूद-ओ-ज़ियाँ को मत सोचो
मोहब्बतों में तो नुक़सान हो भी सकता है

बहुत गराँ है जुदाई मगर जो होना हो
तो फिर ये फ़ैसला आसान हो भी सकता है

बस इस ख़बर से कि ये शहर है हुजूम सा कुछ
बस इक ख़बर से ये वीरान हो भी सकता है