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एक इक साँस में सदियों का सफ़र काटते हैं | शाही शायरी
ek ek sans mein sadiyon ka safar kaTte hain

ग़ज़ल

एक इक साँस में सदियों का सफ़र काटते हैं

अज़हर नक़वी

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एक इक साँस में सदियों का सफ़र काटते हैं
ख़ौफ़ के शहर में रहते हैं सो डर काटते हैं

पहले भर लेते हैं कुछ रंग तुम्हारे उस में
और फिर हम उसी तस्वीर का सर काटते हैं

ख़्वाब मुट्ठी में लिए फिरते हैं सहरा सहरा
हम वही लोग हैं जो धूप के पर काटते हैं

सौंप कर उस को तिरे दर्द के सारे मौसम
फिर उसी लम्हे को हम ज़िंदगी-भर काटते हैं

तू नहीं है तो तिरे शहर की तस्वीर में हम
सारे वीराने बना देते हैं घर काटते हैं

उस की यादों के परिंदों को उड़ा कर 'अज़हर'
दिल से अब दर्द का इक एक शजर काटते हैं