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दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है | शाही शायरी
dil kuchh der machalta hai phir yaadon mein yun kho jata hai

ग़ज़ल

दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है

अज़हर नक़वी

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दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है
जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा रोते रोते सो जाता है

सर्द हवा या टूटा ताव पूरी रात अधूरा चाँद
मेरे आँगन की मिट्टी को जाने कौन भिगो जाता है

इक इक कर के धूप के सारे सुर्ख़ परिंदे मर जाते हैं
रेत के ज़र्द समुंदर पर जब सूरज पाँव धो जाता है

तुझ से बिछड़ कर रात का इक इक लम्हा सदियों में कटता है
दिन के होते होते अब तो एक ज़माना हो जाता है

रात गए तन्हाई मुझ से अक्सर पूछने आ जाती है
चुप की इस बस्ती को शोर-ओ-ग़ुल में कौन डुबो जाता है