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अनवर ताबाँ शायरी | शाही शायरी

अनवर ताबाँ शेर

19 शेर

आएगा वो दिन हमारी ज़िंदगी में भी ज़रूर
जो अँधेरों को मिटा कर रौशनी दे जाएगा

अनवर ताबाँ




आज मग़्मूम क्यूँ हो ऐ 'ताबाँ'
कुछ तो बोलो कि माजरा क्या है

अनवर ताबाँ




दिल है परेशाँ उन की ख़ातिर
पल भर को आराम नहीं है

अनवर ताबाँ




हँसते हँसते निकल पड़े आँसू
रोते रोते कभी हँसी आई

अनवर ताबाँ




हर एक शख़्स मिरा शहर में शनासा था
मगर जो ग़ौर से देखा तो मैं अकेला था

अनवर ताबाँ




हरीम-ए-नाज़ के पर्दे में जो निहाँ था कभी
उसी ने शोख़ अदाएँ दिखा के लूट लिया

अनवर ताबाँ




इस ख़ौफ़ में कि खुद न भटक जाएँ राह में
भटके हुओं को राह दिखाता नहीं कोई

अनवर ताबाँ




जी तो ये चाहता है मर जाएँ
ज़िंदगी अब तिरी रज़ा क्या है

अनवर ताबाँ




ख़ुशी की बात और है ग़मों की बात और
तुम्हारी बात और है हमारी बात और

अनवर ताबाँ