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मेरे लब पर अगर कभी आई | शाही शायरी
mere lab par agar kabhi aai

ग़ज़ल

मेरे लब पर अगर कभी आई

अनवर ताबाँ

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मेरे लब पर अगर कभी आई
रक़्स करती हुई हँसी आई

उन के मुझ पर सितम बढ़े जब से
दर्द दिल में बहुत कमी आई

हँसते हँसते निकल पड़े आँसू
रोते रोते कभी हँसी आई

रक़्स करने लगे मिरे अरमाँ
याद जब उन की झूमती आई

मिशअल-ए-राह बन के ऐ 'ताबाँ'
उन के जल्वों की रौशनी आई