मेरे लब पर अगर कभी आई
रक़्स करती हुई हँसी आई
उन के मुझ पर सितम बढ़े जब से
दर्द दिल में बहुत कमी आई
हँसते हँसते निकल पड़े आँसू
रोते रोते कभी हँसी आई
रक़्स करने लगे मिरे अरमाँ
याद जब उन की झूमती आई
मिशअल-ए-राह बन के ऐ 'ताबाँ'
उन के जल्वों की रौशनी आई
ग़ज़ल
मेरे लब पर अगर कभी आई
अनवर ताबाँ