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अनवर मोअज़्ज़म शायरी | शाही शायरी

अनवर मोअज़्ज़म शेर

12 शेर

आँखों में घुल न जाएँ कहीं ज़ुल्मतों के रंग
जिस सम्त रौशनी है उधर देखते रहो

अनवर मोअज़्ज़म




आओ देखें अहल-ए-वफ़ा की होती है तौक़ीर कहाँ
किस महफ़िल का नाम है मक़्तल खिंचती है शमशीर कहाँ

अनवर मोअज़्ज़म




धुआँ उठता नज़र आता है हर-सू
अभी आबाद है वीराना दिल का

अनवर मोअज़्ज़म




दिलों की आग बढ़ाओ कि लोग कहते हैं
चराग़-ए-हुस्न से रौशन जहाँ नहीं होता

अनवर मोअज़्ज़म




एक आवाज़ तो गूँजी थी उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़
कारवाँ गुम है कहाँ गर्द-ए-सफ़र से पूछो

अनवर मोअज़्ज़म




हमें बादा-कश-ए-दर्द-ए-तमन्ना
हमीं पर बंद है मय-ख़ाना दिल का

अनवर मोअज़्ज़म




हुजूम-ए-सुब्ह की तन्हाइयों में डूब गए
वो क़ाफ़िले जो अँधेरों की अंजुमन से चले

अनवर मोअज़्ज़म




कौन रोया पस-ए-दीवार-ए-चमन आख़िर-ए-शब
क्यूँ सबा लौट गई राहगुज़र से पूछो

अनवर मोअज़्ज़म




न मिला पर न मिला इश्क़ को अंदाज़-ए-जुनूँ
हम ने मजनूँ की भी आशुफ़्ता-सरी देखी है

अनवर मोअज़्ज़म