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डूबते तारों से पूछो न क़मर से पूछो | शाही शायरी
Dubte taron se puchho na qamar se puchho

ग़ज़ल

डूबते तारों से पूछो न क़मर से पूछो

अनवर मोअज़्ज़म

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डूबते तारों से पूछो न क़मर से पूछो
क़िस्सा-ए-रुख़्सत-ए-शब शम-ए-सहर से पूछो

किस ने बहलाया ख़िज़ाँ को गुल-ए-तर से पूछो
गुल पे क्या गुज़री बहारों के जिगर से पूछो

कौन रोया पस-ए-दीवार-ए-चमन आख़िर-ए-शब
क्यूँ सबा लौट गई राहगुज़र से पूछो

रात भर दीप सर-ए-राह जले किस के लिए
क्यूँ अँधेरा था भरे घर में क़मर से पूछो

किस के दामन से लगी निकहत-ए-गुल रोती है
कौन होता है जुदा जी के नगर से पूछो

एक आवाज़ तो गूँजी थी उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़
कारवाँ गुम है कहाँ गर्द-ए-सफ़र से पूछो