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आओ देखें अहल-ए-वफ़ा की होती है तौक़ीर कहाँ | शाही शायरी
aao dekhen ahl-e-wafa ki hoti hai tauqir kahan

ग़ज़ल

आओ देखें अहल-ए-वफ़ा की होती है तौक़ीर कहाँ

अनवर मोअज़्ज़म

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आओ देखें अहल-ए-वफ़ा की होती है तौक़ीर कहाँ
किस महफ़िल का नाम है मक़्तल खिंचती है शमशीर कहाँ

छूट न पाओगे दिल वालो चाहत के इस ज़िंदाँ से
चाहो तो दिल टूट भी जाएँ टूटेगी ज़ंजीर कहाँ

चश्म-ए-सहर में आस उमीद क्या आँसू की इक बूँद नहीं
यूँ दामन फैलाए चले हैं रातों के रहगीर कहाँ

सदियों के पहचाने ख़्वाबों से बोझल इन आँखों को
अनजाने ख़्वाबों के शहर में ले आई ता'बीर कहाँ

इक वीराना एक शजर कुछ साए दो प्यासी आँखें
देखें सजेगी दिन के मकान में रात की ये तस्वीर कहाँ

वक़्त का दरिया ले भी गया वो सब जो दिल-ओ-जाँ से था अज़ीज़
ढूँढ रहे हो साहिल पर अब आँसू की तहरीर कहाँ