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दीदा-ए-तर ने अजब जल्वागरी देखी है | शाही शायरी
dida-e-tar ne ajab jalwagari dekhi hai

ग़ज़ल

दीदा-ए-तर ने अजब जल्वागरी देखी है

अनवर मोअज़्ज़म

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दीदा-ए-तर ने अजब जल्वागरी देखी है
ग़म ने जिस शाख़ को पाला वो हरी देखी है

हाए किस बुत की ख़ुदाई का भरम टूटा है
ख़ल्क़ ने आज इन आँखों में तरी देखी है

न मिला पर न मिला इश्क़ को अंदाज़-ए-जुनूँ
हम ने मजनूँ की भी आशुफ़्ता-सरी देखी है

आब-ओ-गिल ग़ुंचा-ओ-गुल दीदा-ओ-दिल शम्स-ओ-क़मर
किन हिजाबों में तिरी पर्दा-दरी देखी है

हाँ कभी खुल न सका फूल पे मज़मून-ए-बहार
ओ सबा हम ने तिरी नामा-बरी देखी है

कौन असीर-ए-ग़म-ए-कोताही-ए-पर्वाज़ नहीं
किस ने सय्याद की बे-बाल-ओ-परी देखी है