अँधेरी रात है साया तो हो नहीं सकता
ये कौन है जो मिरे साथ साथ चलता है
अंजुम ख़याली
आँख झपकीं तो इतने अर्से में
जाने कितने बरस गुज़र जाएँ
अंजुम ख़याली
अज़ाँ पे क़ैद नहीं बंदिश-ए-नमाज़ नहीं
हमारे पास तो हिजरत का भी जवाज़ नहीं
अंजुम ख़याली
बाज़ वादे किए नहीं जाते
फिर भी उन को निभाया जाता है
अंजुम ख़याली
इस नाम का कोई भी नहीं है
जिस नाम से हम पुकारते हैं
अंजुम ख़याली
जाँ क़र्ज़ है सो उतारते हैं
हम उम्र कहाँ गुज़ारते हैं
अंजुम ख़याली
जब तक मैं पहुँचता हूँ कड़ी धूप में चल कर
दीवार का साया पस-ए-दीवार न हो जाए
अंजुम ख़याली
कहाँ मिला मैं तुझे ये सवाल ब'अद का है
तू पहले याद तो कर किस जगह गँवाया मुझे
अंजुम ख़याली
कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है
जैसे बाज़ार में हर घर से गली आती है
अंजुम ख़याली