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आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए | शाही शायरी
aazar mere dil ka dil-azar na ho jae

ग़ज़ल

आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए

अंजुम ख़याली

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आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए
जो कर्ब निहाँ है वो नुमूदार न हो जाए

आवाज़ भी देती है कि उठ जाग मेरे लाल
डरती भी है बच्चा कहीं बेदार न हो जाए

जब तक मैं पहुँचता हूँ कड़ी धूप में चल कर
दीवार का साया पस-ए-दीवार न हो जाए

पर्दा न सरक जाए कहीं ऐ दिल-ए-बेताब
वो पर्दा-नशीं और पुर-असरार न हो जाए

बढ़ता चला जाता है ज़माने से तअल्लुक़
ये सिलसिला ज़ंजीर-ए-गिराँ-बार न हो जाए

आराम से रहता ही नहीं बंदा-ए-बे-दाम
जब तक किसी मुश्किल में गिरफ़्तार न हो जाए