कुछ तसावीर बोल पड़ती हैं
सब की सब बे-ज़बाँ नहीं होतीं
अंजुम ख़याली
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मिरे मज़ार पे आ कर दिए जलाएगा
वो मेरे ब'अद मिरी ज़िंदगी में आएगा
अंजुम ख़याली
मुझे हँसी भी मिरे हाल पर नहीं आती
वो ख़ुद भी रोएगा औरों को भी रुलाएगा
अंजुम ख़याली
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मुझे कुछ देर रुकना चाहिए था
वो शायद देख ही लेता पलट कर
अंजुम ख़याली
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शब को इक बार खुल के रोता हूँ
फिर बड़े सुख की नींद सोता हूँ
अंजुम ख़याली
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उम्र भर जंगल में रह सकता हूँ मैं
इस में घर जैसी फ़ज़ा मौजूद है
अंजुम ख़याली
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