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अंजुम ख़याली शायरी | शाही शायरी

अंजुम ख़याली शेर

15 शेर

कुछ तसावीर बोल पड़ती हैं
सब की सब बे-ज़बाँ नहीं होतीं

अंजुम ख़याली




मिरे मज़ार पे आ कर दिए जलाएगा
वो मेरे ब'अद मिरी ज़िंदगी में आएगा

अंजुम ख़याली




मुझे हँसी भी मिरे हाल पर नहीं आती
वो ख़ुद भी रोएगा औरों को भी रुलाएगा

अंजुम ख़याली




मुझे कुछ देर रुकना चाहिए था
वो शायद देख ही लेता पलट कर

अंजुम ख़याली




शब को इक बार खुल के रोता हूँ
फिर बड़े सुख की नींद सोता हूँ

अंजुम ख़याली




उम्र भर जंगल में रह सकता हूँ मैं
इस में घर जैसी फ़ज़ा मौजूद है

अंजुम ख़याली