आप का कोई सफ़र बे-सम्त बे-मंज़िल न हो
ज़िंदगी ऐसी न जीना जिस का मुस्तक़बिल न हो
अनीस देहलवी
आप की बातों में आ कर खो दिया दिल का सुकूँ
ज़िंदगी में देखिए मेरी बचा कुछ भी नहीं
अनीस देहलवी
छीन लीं ख़ुशियाँ मिरी आँखों से मेरी नींद भी
ज़िंदगी तू ने मुझे अब तक दिया कुछ भी नहीं
अनीस देहलवी
जो दिल बाँधे वो जादू जानता है
मिरा महबूब उर्दू जानता है
अनीस देहलवी
कैसा अजीब वक़्त है कोई भी हम-सफ़र नहीं
धूप भी मो'तबर नहीं साया भी मो'तबर नहीं
अनीस देहलवी
करना है आप को जो नए रास्तों की खोज
सब जिस तरफ़ न जाएँ उधर जाना चाहिए
अनीस देहलवी
निगाह चाहिए बस अहल-ए-दिल फ़क़ीरों की
बुरा भी देखूँ तो मुझ को भला नज़र आए
अनीस देहलवी
पता इस का तो हम रिंदों से पूछो
ख़ुदा को कब ये साधू जानता है
अनीस देहलवी
सहरा से चले आ भी गए दार-ओ-रसन तक
होना था जिन्हें वो न हमारे हुए लोगो
अनीस देहलवी