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आग़ाज़ बरनी शायरी | शाही शायरी

आग़ाज़ बरनी शेर

8 शेर

अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे
हम भी पैराया-ए-इज़हार नहीं बदलेंगे

आग़ाज़ बरनी




ऐ शब-ए-ग़म मिरे मुक़द्दर की
तेरे दामन में इक सहर होती

आग़ाज़ बरनी




मैं ख़ुद से छुपा लेकिन
उस शख़्स पे उर्यां था

आग़ाज़ बरनी




मैं तो बस ये चाहता हूँ वस्ल भी
दो दिलों के दरमियाँ हाएल न हो

आग़ाज़ बरनी




मिरे एहसास के आतिश-फ़िशाँ का
अगर हो तो मिरे दिल तक धुआँ हो

आग़ाज़ बरनी




क़द का अंदाज़ा तुम्हें हो जाएगा
अपने साए को घटा कर देखना

आग़ाज़ बरनी




उसे सुलझाऊँ कैसे
मैं ख़ुद उलझा हुआ हूँ

आग़ाज़ बरनी




वो ख़्वाब जिस पे तीरा-शबी का गुमान था
वो ख़्वाब आफ़्ताब की ताबीर हो गया

आग़ाज़ बरनी