अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे
हम भी पैराया-ए-इज़हार नहीं बदलेंगे
रास्ते ख़ुद ही बदल जाएँ तो बदलें वर्ना
चलने वाले कभी रफ़्तार नहीं बदलेंगे
दूर तक है वही आसेब का पहरा अब भी
क्या मिरे शहर के अतवार नहीं बदलेंगे
मैं समझता हूँ सितारे जो सहर से पहले
बुझने वाले हैं शब-ए-तार नहीं बदलेंगे
गुल बदल जाएँगे जब मौसम-ए-गुल बिछड़ेगा
जब ख़िज़ाँ जाएगी तो ख़ार नहीं बदलेंगे
लोग बदलेंगे मफ़ाहीम मुसलसल 'आग़ाज़'
और ये सच है मिरे अशआर नहीं बदलेंगे
ग़ज़ल
अब अगर इश्क़ के आसार नहीं बदलेंगे
आग़ाज़ बरनी