अब तो हर एक अदाकार से डर लगता है
मुझ को दुश्मन से नहीं यार से डर लगता है
अफ़ज़ल इलाहाबादी
अश्क आँखों में लिए आठों पहर देखेगा कौन
हम नहीं होंगे तो तेरी रहगुज़र देखेगा कौन
अफ़ज़ल इलाहाबादी
ग़मों की धूप में मिलते हैं साएबाँ बन कर
ज़मीं पे रहते हैं कुछ लोग आसमाँ बन कर
अफ़ज़ल इलाहाबादी
हर नग़मा-ए-पुर-दर्द हर इक साज़ से पहले
हंगामा बपा होता है आग़ाज़ से पहले
अफ़ज़ल इलाहाबादी
हो नहीं पाती शाइरी 'अफ़ज़ल'
नज़्र जब तक लहू नहीं करता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
ख़ुदी की दौलत-ए-उज़मा ख़ुदा ने मुझ को बख़्शी है
क़लंदर हूँ मैं शाहों की गदाई कर नहीं सकता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँ
वो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता
अफ़ज़ल इलाहाबादी
में इज़्तिराब के आलम में रक़्स करता रहा
कभी ग़ुबार की सूरत कभी धुआँ बन कर
अफ़ज़ल इलाहाबादी
तेरी निस्बत मिली मुझे जब से
मैं कोई आरज़ू नहीं करता
अफ़ज़ल इलाहाबादी