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आसी उल्दनी शायरी | शाही शायरी

आसी उल्दनी शेर

7 शेर

अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं

आसी उल्दनी




बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'
बेचारे ने फिर तुम को कहीं देख लिया है

आसी उल्दनी




इश्क़ पाबंद-ए-वफ़ा है न कि पाबंद-ए-रुसूम
सर झुकाने को नहीं कहते हैं सज्दा करना

love is known by faithfulness and not by rituals bound
just bowing of one's head is not

आसी उल्दनी




जहाँ अपना क़िस्सा सुनाना पड़ा
वहीं हम को रोना रुलाना पड़ा

आसी उल्दनी




कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना
वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो

आसी उल्दनी




मुरत्तब कर गया इक इश्क़ का क़ानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनूँ को दीवाना बताते हैं

आसी उल्दनी




सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन
होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ

आसी उल्दनी