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Zulf शायरी | शाही शायरी

Zulf

58 शेर

बाल अपने उस परी-रू ने सँवारे रात भर
साँप लोटे सैकड़ों दिल पर हमारे रात भर

लाला माधव राम जौहर




बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए
अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए

लाला माधव राम जौहर




मुँह पर नक़ाब-ए-ज़र्द हर इक ज़ुल्फ़ पर गुलाल
होली की शाम ही तो सहर है बसंत की

लाला माधव राम जौहर




तसव्वुर ज़ुल्फ़ का है और मैं हूँ
बला का सामना है और मैं हूँ

लाला माधव राम जौहर




ज़ुल्फ़ें मुँह पर हैं मुँह है ज़ुल्फ़ों में
रात भर सुब्ह शाम दिन भर है

लाला माधव राम जौहर




उन के गेसू सँवरते जाते हैं
हादसे हैं गुज़रते जाते हैं

महेश चंद्र नक़्श




हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए
उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए

whether me or you, or miir it may be
are prisoners of her tresses for eternity

मीर तक़ी मीर