बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए
अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए
आए कभी तो सैकड़ों बातें सुना गए
क़ुर्बान ऐसे आने के क्या आए क्या गए
सुन पाई मेरी आबला-पाई की जब ख़बर
चारों तरफ़ वो राह में काँटे बिछा गए
हम वो नहीं सुनें जो बुराई हुज़ूर की
ये आप थे जो ग़ैर की बातों में आ गए
मैं ने जो तख़लिया में कहा हाल-ए-दिल कभी
मुँह से न कुछ जवाब दिया मुस्कुरा गए
ग़ज़ल
बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए
लाला माधव राम जौहर