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उन के गेसू सँवरते जाते हैं | शाही शायरी
un ke gesu sanwarte jate hain

ग़ज़ल

उन के गेसू सँवरते जाते हैं

महेश चंद्र नक़्श

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उन के गेसू सँवरते जाते हैं
हादसे हैं गुज़रते जाते हैं

वक़्त सुनता है जिन की आवाज़ें
हाए वो लोग मरते जाते हैं

डूबने वाले मौज-ए-तूफ़ाँ से
जाने क्या बात करते जाते हैं

यूँ गुज़रते हैं हिज्र के लम्हे
जैसे वो बात करते जाते हैं

होश में आ रहे हैं दीवाने
किस के जल्वे बिखरते जाते हैं

क्या ख़बर आज किस की यादों के
'नक़्श' दिल पर उभरते जाते हैं