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Zulf शायरी | शाही शायरी

Zulf

58 शेर

तिरे रुख़्सार से बे-तरह लिपटी जाए है ज़ालिम
जो कुछ कहिए तो बल खा उलझती है ज़ुल्फ़ बे-ढंगी

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




तिरी जो ज़ुल्फ़ का आया ख़याल आँखों में
वहीं खटकने लगा बाल बाल आँखों में

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम