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फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है | शाही शायरी
fikr-e-ghurbat hai na andesha-e-tanhai hai

ग़ज़ल

फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है

अमीर क़ज़लबाश

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फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है
ज़िंदगी कितने हवादिस से गुज़र आई है

लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है

हम न सुक़रात न मंसूर न ईसा लेकिन
जो भी क़ातिल है हमारा ही तमन्नाई है

ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
तुझ से इक उम्र की हालाँकि शनासाई है

कौन ना-वाक़िफ़-ए-अंजाम-ए-तबस्सुम है 'अमीर'
मेरे हालात पे ये किस को हँसी आई है