अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं
तेरी सूरत में है क्या जो मेरी सूरत में नहीं
दोनों आलम तिरी नैरंग अदाई के निसार
अब कोई चीज़ यहाँ जेब-ए-मोहब्बत में नहीं
दौलत-ए-क़ुर्ब को ख़सान-ए-मोहब्बत जानें
चंद अश्कों के सिवा कुछ मेरी क़िस्मत में नहीं
लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
कौन सा सेहर तिरी चश्म-ए-इनायत में नहीं
सब से इक तर्ज़ जुदा सब से इक आहंग जुदा
रंग महफ़िल में तिरा जो है वो ख़ल्वत में नहीं
नश्शा-ए-इश्क़ में हर चीज़ उड़ी जाती है
कौन ज़र्रा है कि सरशार मोहब्बत में नहीं
दावा-ए-दीद ग़लत दावा-ए-इरफ़ाँ भी ग़लत
कुछ तजल्ली के सिवा चश्म-ए-बसीरत में नहीं
हो गई जमा मता-ए-ग़म-ए-हिर्मां क्यूँकर
मैं समझता था कोई पर्दा-ए-ग़फ़लत में नहीं
ज़र्रे ज़र्रे में किया जोश-ए-तरन्नुम पैदा
ख़ुद मगर कोई नवा साज़-ए-मोहब्बत में नहीं
नज्द की सम्त से ये शोर-ए-अना-लैला क्यूँ
शोख़ी-ए-हुस्न अगर पर्दा-ए-वहशत में नहीं
ग़ज़ल
अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं
असग़र गोंडवी