यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ज़िंदगी इक हादसा है और कैसा हादसा
मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले
कैफ़ भोपाली
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ
कैफ़ भोपाली
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए
ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है
कलीम आजिज़
तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
कलीम आजिज़
ज़िंदगी माइल-ए-फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ आज भी है
कल भी था सीने पे इक संग-ए-गिराँ आज भी है
कलीम आजिज़