हाए लोगों की करम-फ़रमाइयाँ
तोहमतें बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ
क्या ज़माने में यूँ ही कटती है रात
करवटें बेताबियाँ अंगड़ाइयाँ
क्या यही होती है शाम-ए-इंतिज़ार
आहटें घबराहटें परछाइयाँ
एक रिंद-ए-मस्त की ठोकर में हैं
शाहियाँ सुल्तानियाँ दाराइयाँ
एक पैकर में सिमट कर रह गईं
ख़ूबियाँ ज़ेबाइयाँ रानाइयाँ
रह गईं इक तिफ़्ल-ए-मकतब के हुज़ूर
हिकमतें आगाहियाँ दानाइयाँ
ज़ख़्म दिल के फिर हरे करने लगीं
बदलियाँ बरखा रुतें पुरवाइयाँ
दीदा-ओ-दानिस्ता उन के सामने
लग़्ज़िशें नाकामियाँ पसपाइयाँ
मेरे दिल की धड़कनों में ढल गईं
चूड़ियाँ मौसीक़ियाँ शहनाइयाँ
उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं
उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ
'कैफ़' पैदा कर समुंदर की तरह
वुसअतें ख़ामोशियाँ गहराइयाँ
ग़ज़ल
हाए लोगों की करम-फ़रमाइयाँ
कैफ़ भोपाली