अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई
ज़िंदगी मजबूरियों का नाम हो कर रह गई
गणेश बिहारी तर्ज़
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दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
ग़ुलाम भीक नैरंग
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
गोपाल मित्तल
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
गुलज़ार
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एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है
ज़िंदगी कहते हैं जिस को राम का बन-बास है
हफ़ीज़ बनारसी
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कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया
तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया
हफ़ीज़ बनारसी
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी