बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं
आज भी पाया है उन को बद-मिज़ाज
सूरत-ए-हालात अभी अच्छी नहीं
हसरत-ए-दिल देख आँखों में न बैठ
इस क़दर बे-पर्दगी अच्छी नहीं
मैं न कहता था दिल-ए-ख़ाना-ख़राब
दिलबरों से दिल-लगी अच्छी नहीं
सैर कीजे हुस्न के बाज़ार की
हाँ मगर आवारगी अच्छी नहीं
दिल लगाओ तो लगाओ दिल से दिल
दिल-लगी ही दिल-लगी अच्छी नहीं
ये हवा ये अब्र ये सब्ज़ा 'हफ़ीज़'
आज पीने में कमी अच्छी नहीं
ग़ज़ल
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी