वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
नासिर काज़मी
ज़िंदगी जिन के तसव्वुर से जिला पाती थी
हाए क्या लोग थे जो दाम-ए-अजल में आए
नासिर काज़मी
उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा
हमें फिर आज पुराने दयार ले आई
राजेन्द्र मनचंदा बानी
वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
अब ऐसे लोग तो कम देखने में आते हैं
सलीम कौसर
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
अब देखने को जिन के आँखें तरसतियाँ हैं
मोहम्मद रफ़ी सौदा
बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है
शहरयार
इस दुख में हाए यार यगाने किधर गए
सब छोड़ हम को ग़म में न जाने किधर गए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम