उठ गई हैं सामने से कैसी कैसी सूरतें
रोइए किस के लिए किस किस का मातम कीजिए
हैदर अली आतिश
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
अब सुख के सपने क्या देखें जब दुख का सूरज सर पर हो
इब्न-ए-इंशा
जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक
अब कहाँ हैं वो सूरतें बाक़ी
इब्न-ए-मुफ़्ती
वो लोग अपने आप में कितने अज़ीम थे
जो अपने दुश्मनों से भी नफ़रत न कर सके
खलील तनवीर
जिन्हें अब गर्दिश-ए-अफ़्लाक पैदा कर नहीं सकती
कुछ ऐसी हस्तियाँ भी दफ़्न हैं गोर-ए-ग़रीबाँ में
मख़मूर देहलवी
हाए वो लोग जो देखे भी नहीं
याद आएँ तो रुला देते हैं
मोहम्मद अल्वी
जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर'
वो लोग आँखों से ओझल हो गए हैं
नासिर काज़मी